हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करना है। शरीर की दूसरी बीमारियों पर जहां खुल कर बात और इलाज किया जाता है, वहीं मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोग मुखर नहीं हैं। दुनियाभर के देशों में इस मौके पर लोगों को मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरुक किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मानसिक दबाव के चलते हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत हो रही है।
मौजूदा दौर में जब कोविड-19 की वजह से जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतरी हुई है ऐसे में लोगों की मानसिक स्थिति और खराब हो रही है, खास तौर पर शहरों से ग्रामीण इलाकों में लौटे मजदूरों और किसानों की। जो काम की तलाश में शहरों की तरफ आए थे लेकिन महामारी और बेरोजगारी के चलते उन्हें गांवों का रुख करना पड़ा। महामारी के साथ-साथ लोग बेरोजगारी जैसी समस्या से जूझ रहे हैं। जानकारों का मानना है कि कोविड-19 और लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण इलाकों में खास तौर पर महिला किसानों को सबसे ज्यादा मानसिक तनाव से दो चार होना पड़ा।
महाराष्ट्र के यवतमाल में महिला किसानों के हेल्थ और न्यूट्रीशन के लिए काम करने वाली संस्था सृजन की डायरेक्टर योगिनी डोलके ने हिंद किसान से बातचीत में बताया कि कैसे कोविड और लॉकडाउन में किसानों को आर्थिक और मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ा। उन्होंने कहा कि ‘महाराष्ट्र के यवतमाल में अप्रैल 15 के बाद से किसान अपना कपास बेचते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से किसान कपास नहीं बेच पाए। बाद में उन्हें औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ी।’
किसान आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र नंबर वन है। एनसीआरबी के मुताबिक 2019 में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 38 फीसदी किसानों ने आत्महत्या की।
डायरेक्टर योगिनी डोलके का कहना है कि ‘यवतमाल के केडापुर और जरी-जामनी ब्लॉक में पांच में से तीन महिलाएं मानसिक तनाव से जूझ रही हैं। इसकी बड़ी वजह है आर्थिक तंगी।’ उनके मुताबिक ‘इन दोनों ब्लॉक में महिला किसान फसल की बुआई और दूसरी जरूरतों के लिए छोटे-छोटे सेल्फ हेल्प ग्रुप से लोन लेती थी लेकिन पैसे की तंगी के चलते ये महिलाएं इन ग्रुप्स को लोन नहीं चुका पाई जिसकी वजह से ऐसे स्वयं सहायता ग्रुप को बड़े बैंकों ने कर्ज देने से इंकार कर दिया। ऐसे में इन महिलाओं को सेल्फ हेल्प ग्रुप की जगह प्राइवेट ट्रेडर्स (साहूकार) से कर्ज लेना पड़ा लेकिन ऐसे में इन महिलाओं को कर्ज और ब्याज के जाल में फंसने का डर सता रहा है।’
महिला किसानों के लिए काम करने वाली संस्था से जुड़ीं सीमा कुलकर्णी का भी कहना है कि ‘महाराष्ट्र में तो पहले ही महिला किसानों की आत्महत्या एक बड़ा मुद्दा है लेकिन कोविड के दौरान महिला किसानों की सेहत को नजरअंदाज किया गया। महिला किसानों की मानसिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार की तरफ से भी कोई कदम नहीं उठाए गए।’
मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर भारत ज्ञान विज्ञान समिति के एक कार्यक्रम में मेंटल हेल्थ एंड लॉ की प्रोग्राम मैनेजर जैसमीन काल्हा ने कहा कि ‘मौजूदा दौर में मानसिक स्वास्थ्य की तरफ ध्यान देना बेहद जरूरी है। खासतौर से सरकार की ओर से ग्रामीण इलाकों में पंचायत स्तर पर काउंसलिंग सेंटर बनाए जाएं। जहां लोग खुल कर अपनी समस्याओं पर बात कर सकें। जब तक इस तरह के कदम नहीं उठाए जाएंगे मानसिक समस्याओं से निपटना मुश्किल होगा।’
कबसे मनाया जा रहा है विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत 1992 में हुई। साल 1994 में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस को एक थीम के साथ मनाने की शुरुआत की गई। इसकी पहली थीम थी ‘दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार।’