केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के समर्थन में अब महिलाएं भी सड़क पर उतरने लगी हैं। 15 अक्टूबर को राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के मौके पर हरियाणा के गुरुग्राम में महिलाओं ने प्रदर्शन किया। हरियाणा की पारंपरिक वेश-भूषा में इन महिलाओं ने रैली निकाली और इस मुद्दे पर सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश की। राष्ट्रीय महिला जाट संघ की अगुवाई में किसान परिवारों की इन महिलाओं ने एसडीएम को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नाम ज्ञापन भी सौंपा।
राष्ट्रीय किसान जाट संघ की सदस्य सुमन हुड्डा ने कहा, ‘हम किसानों के हक में खड़े हैं और ये बात भी समझिए कि नारी को आगे क्यों आना पड़ा। आज औरतें निकली हैं कल बच्चे भी आएंगे। हम न किसी पार्टी के साथ हैं, न किसी सरकार के साथ हैं, हम किसान की बेटियां हैं, हम किसानों के साथ हैं।’ उन्होंने कहा कि ‘हमारी मांगें हैं कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीद की गारंटी मिलनी चाहिए, एमएसपी से कम कीमत पर फसल खरीदने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, एपीएमसी एक्ट खत्म नहीं होना चाहिए, स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक किसानों को सी-2 लागत के हिसाब से फसलों की कीमत मिले, जिन फसलों का देश में उत्पादन हो रहा है, उनके आयात पर रोक लगे।’

हरियाणा में कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। इतना ही नहीं, बीजेपी सांसदों और मंत्रियों का बहिष्कार अभियान भी चला रहे हैं। 14 अक्टूबर को हरियाणा के नारायणगढ़ में केंद्रीय मंत्री रतनलाल कटारिया और सांसद नायब सैनी को उस वक्त किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा, जब वे कृषि कानूनों की हिमायत करने और किसानों को जागरूक करने के मकसद से ट्रैक्टर रैली निकाल रहे थे। नाराज किसानों ने उनको काले झंडे दिखाए और घेराव करने के साथ उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की।
इस बीच पंजाब में किसानों का रेल रोको आंदोलन 24 सितंबर से जारी है। इस बीच सरकार ने बातचीत के लिए किसान संगठनों को दिल्ली बुलाया था, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला था। इस बारे में किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के अध्यक्ष सरवन सिंह ने हिंद किसान को बताया कि ‘सरकार से बातचीत का माहौल नहीं है। सरकार किसानों के साथ मजाक कर रही है। वह बातचीत करना ही नहीं चाहती। बातचीत के नाम पर देश को दिखाना चाह रही है कि हमने बातचीत कर ली है। सरकार का इरादा ही नहीं है।’ वहीं, रेल रोको आंदोलन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जब तक सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है, यह आंदोलन जारी रहेगा।’