केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। किसान लगातार सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद करने को लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। इसी कड़ी में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की अपील पर किसान संगठनों ने 14 अक्टूबर को एमएसपी अधिकार दिवस मनाया। किसानों ने मंडी में जाकर आंदोलन किया। गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ बीजेपी सांसदों के दफ्तरों का घेराव भी किया।
छत्तीसगढ़ में किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने हिंद किसान से कहा कि ‘ये जो किसान विरोधी कानून बने हैं इन्होंने सबसे ज्यादा चोट किसानों के समर्थन मूल्य पर किया है। जब पूरी कृषि को आपने कॉरपोरेट के हवाले कर दिया और सरकार यह जिम्मेदारी नहीं ले रही है कि वह किसानों का अनाज खरीदेगी तो एक तरह से मंडी की व्यवस्था ही ध्वस्त हो गई है और किसान एमएसपी पर खरीद से वंचित हो गए हैं। इसलिए अब बेहद जरूरी हो गया है कि किसानों को सुरक्षा देने के लिए एमएसपी पर एक कानून बने और उस कानून में स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए कि सी2 लागत का डेढ गुना मुल्य का समर्थन मूल्य घोषित होगा, सरकार किसानों का अनाज खरीदेगी और जो भी एमएसपी से कम कीमत पर किसानों से अनाज खरीदेगा, उस पर कानूनी कार्रवाई होगी।’
संजय पराते ने आगे कहा कि ‘छत्तीसगढ़ में किसी भी मंडी में एमएसपी पर किसानों की फसल नहीं खरीदी जा रही। मक्के की एमएसपी 1850 रुपये प्रति क्विंटल है लेकिन खुले बाजार में किसान इसे 1000 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचने को मजबूर हैं। अगर एमएसपी पर खरीद नहीं होगी तो पीडीएस पर भी इसका असर पड़ेगा।’
किसान लगातार कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। इस सिलसिले में केंद्र सरकार ने 14 अक्टूबर को पंजाब के 29 किसान संगठनों को बातचीत के लिए दिल्ली बुलाया था लेकिन कृषि सचिव और किसान नेताओं के बीच हुई ये बातचीत बेनतीजा रही। किसान संगठनों का कहना है कि सरकार जब तक ये कानून वापस नहीं लेती आंदोलन जारी रहेगा। किसान संगठन पहले ही तीन नवंबर को देशभर में चक्का जाम करने और 26-27 नवंबर को दिल्ली में रैली करने का ऐलान कर चुके हैं।