उत्तर प्रदेश में धान की सरकारी खरीद एक अक्टूबर से शुरू होने के बावजूद किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लाभ नहीं मिलता नजर आ रहा है। प्रदेश की आदित्यनाथ सरकार ने इस साल के लिए प्रस्तावित 4,000 खरीद केंद्रों में से 3,118 केंद्रों को चालू करने का दावा किया है। लेकिन इसकी जमीनी हकीकत पर सवाल उठ रहे है। अनाज खरीद करने की नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़ों के मुताबिक, 8 अक्टूबर तक धान खरीद में उत्तर प्रदेश का नाम ही शामिल नहीं है। वहीं, एफसीआई की वेबसाइट पर मौजूद 5 अक्टूबर तक के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में पांच दिन तक एक भी दाना धान नहीं खरीदा गया है। इसके मुकाबले पंजाब में पांच लाख 58 हजार टन और हरियाणा में दो लाख 38 हजार टन धान खरीद चुके हैं। इन दोनों राज्यों में धान खरीद 26 सितंबर से शुरू की गई थी। इसके पीछे कमजोर खरीद व्यवस्था को बड़ी वजह बताया जा रहा है। देश में सबसे ज्यादा धान उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 26 गांव पर एक खरीद केंद्र हैं, जबकि पंजाब में तीन गांव पर एक और हरियाणा में दो गांव पर एक खरीद केंद्र धान की खरीद करते हैं।

किसान के हाथ से दूर न्यूनतम समर्थन मूल्य
एफसीआई के आंकड़े ही नहीं, किसान भी धान खरीद को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के दावों को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष हरनाम सिंह वर्मा बताते हैं कि इस समय खुले बाजार में 900-1000 रुपये क्विंटल के हिसाब से धान बिक रहा है, जबकि ए ग्रेड धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1888 रुपए प्रति कुंतल है। इसकी वजह पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकारी खरीद केंद्रों पर किसानों से धान ही नहीं खरीदा जा रहा है, अगर सरकार धान खरीद रही है तो बताए कि बीते 7 दिनों में कितना धान खरीदा है?
एक तरफ किसानों को अपनी फसलों का दाम नहीं मिल पा रहा है, दूसरी तरफ राज्य का कृषि विभाग केंद्र के कृषि कानूनों से देश में कहीं भी फसल बेचने की आजादी मिलने के दावे कर रहा है। हालांकि, किसान नेता इसे सफेद झूठ बता रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक बताते हैं कि सरकार इन कानूनों को किसानों की आजादी के लिए बता रही है, जबकि वह खुद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद से आजाद होना चाहती है। मुजफ्फरनगर से जुड़े धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि 1509 और 1121 जैसी धान की किस्में पहले 4000 रुपये क्विंटल में आसानी से बिक जाती थीं, इस साल उसे 1,400-1,500 प्रति क्विंटल में बेचना पड़ रहा है।
एफसीआई की खरीद सुस्त
फसीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि धान खरीद का सारा दारोमदार राज्य की खरीद एजेंसियों पर है यानी जहां पर राज्य सरकारों की खरीद एजेंसियां सक्रिया हैं, वहां पर अच्छी धान खरीद हो रही है। 5 अक्टूबर तक हरियाणा में एफसीआई ने सिर्फ एक हजार टन, जबकि राज्य की एजेंसियों ने 2 लाख 37 हजार टन धान खरीदा है। इसी तरह पंजाब में एफसीआई ने सिर्फ छह हजार टन, जबकि राज्य की एजेंसियों ने 5 लाख 52 हजार टन धान खरीदा है।
अगर धान के उत्पादन और सरकारी खरीद में अंतर को देखें तो उत्तर प्रदेश का हाल सबसे खराब है। उत्तर प्रदेश धान उत्पादन में देश में सबसे आगे है, लेकिन सरकारी खरीद एक चौथाई से भी कम है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के मुताबिक, साल 2019-20 में उत्तर प्रदेश में धान की पैदावार 155 लाख टन थी, जबकि सरकारी खरीद सिर्फ 40 लाख टन रही। इसके मुकाबले पंजाब की बात करें तो यहां 2019-20 में 118 लाख टन धान पैदा हुआ, जिसमें से 108 लाख टन धान की सरकारी खरीद हुई यानी कुल उत्पादन का लगभग 90 फीसदी धान सरकारी कीमत पर खरीदा गया।
खरीद केंद्रों की तुलना करें तो उत्तर प्रदेश में लगभग 155 लाख टन अनुमानित धान उत्पादन पर 4000 खरीद केंद्र बनाए हैं, वहीं पंजाब में 108 से लेकर 110 लाख टन के बीच धान उत्पादन पर 4555 खरीद केंद्र बनाए गए हैं। इसके अलावा हरियाणा में 43 लाख टन के आसपास उत्पादित पर सरकारी खरीद केंद्रों की संख्या 196 है।