छत्तीसगढ़ में धमतरी जिले के दुगली गांव में 13 अक्टूबर को आदिवासी परिवारों के घरों को उजाड़ने के मामले में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीआई (एम ) ने अपनी रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 13 अक्टूबर को 20 नहीं बल्कि 35 घरों में आगजनी की गई थी। सीपीआई (एम) ने आरोप लगाया है कि इस हमले का नेतृत्व कांग्रेस नेता शंकर नेताम कर रहे थे, जो दुगली वन प्रबंधन समिति का अध्यक्ष भी है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि खुद शंकर नेताम ने मीडिया को दिए अपने बयान में स्वीकार किया है कि उसने इन घरों को हटाया है।
सीपीआई (एम) की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों में तीन बार इन आदिवासियों पर हमला करके उनके घरों को जलाया गया है, फसलों को नष्ट किया गया है और पीड़ितों का सामाजिक बहिष्कार जारी है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन पांच वर्षों में पीड़ितों को 2 करोड़ रुपयों का नुकसान पहुंचा है। पीड़ितों के वनाधिकार के आवेदन बिना कोई कारण बताये चार बार निरस्त किए गए हैं। साथ ही यह आरोप भी लगाया गया है कि इस आगजनी कांड के 15 दिनों बाद और राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आने के बाद भी प्रशासन का कोई अधिकारी पीड़ितों की सुध लेने उनके गांव नहीं पहुंचा है।
सीपीआई (एम) ने अपनी रिपोर्ट ‘विस्थापन के लिए आगजनी व सामाजिक बहिष्कार और न्याय के लिए अंतहीन इंतज़ार की कहानी’ शीर्षक से साथ पेश की है। पार्टी के दावा है कि इस रिपोर्ट के लिए उसके पदाधिकारियों और स्थानीय नेताओं ने 26-27 अक्टूबर 2020 को क्षेत्र का दौरा किया, पीड़ित परिवारों और अन्य ग्रामीणों से बातचीत की, घटनास्थल का दौरा किया और आवश्यक तथ्य, दस्तावेज और जानकारियां एकत्रित की।
सीपीआई (एम) के राज्य सचिव संजय पराते ने मांग की है कि हमलावरों को गैर-जमानती धाराओं में गिरफ्तार किया जाए, सभी पीड़ित परिवारों को हुए आर्थिक नुकसान और सामाजिक बहिष्कार के कारण उनकी प्रतिष्ठा को पहुंची ठेस की भरपाई के लिए दस-दस लाख रूपये मुआवजा दिया जाए और उन पर दर्ज हुए फर्जी मुक़दमे वापस लिए जाये। इसके साथ ही पीड़ित आदिवासी परिवारों को वनाधिकार पट्टे देने जैसी मांग भी की गई है।
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क्या है पूरा मामला
छत्तीसगढ़ में धमतरी जिले के नगरी विकासखंड में एक गांव है, जिसका नाम है दुगली। गांव में आदिवासी रहते हैं जो खेती-बाड़ी और वनोपज से अपना जीवन यापन करते हैं। 13 अक्टूबर को गांव के 20 आदिवासी परिवारों के घरों को या कहें कि झोपड़ियों को तोड़ कर आग के हवाले कर दिया गया। उनके खेतों पर जानवर छोड़ दिए, पूरी फसल चरा दी गई। यहां तक कि उनके सामाजिक बहिष्कार का ऐलान भी कर दिया गया। आरोप है कि वन ग्राम समिति और इस पंचायत के सरपंच और सचिव की अगुवाई में ये घटना हुई।