छत्तीसगढ़ में धमतरी जिले के नगरी विकासखंड में एक गांव है, जिसका नाम है दुगली। गांव में आदिवासी रहते हैं जो खेती-बाड़ी और वनोपज से अपना जीवन यापन करते हैं। 13 अक्टूबर को गांव के 20 आदिवासी परिवारों के घरों को या कहें कि झोपड़ियों को तोड़ कर आग के हवाले कर दिया गया। उनके खेतों पर जानवर छोड़ दिए, पूरी फसल चरा दी गई। यहां तक कि उनके सामाजिक बहिष्कार का ऐलान भी कर दिया गया। आरोप है कि वन ग्राम समिति और इस पंचायत के सरपंच और सचिव की अगुवाई में ये घटना हुई।
घटना के बाद पुलिस प्रशासन ने जांच कराने का आश्वासन दिया लेकिन पुलिस पर एफआईआर दर्ज न करने के आरोप लग रहे हैं यहां तक कि अब तक जांच अधिकारी ही मौके पर नहीं गए हैं। न्याय की उम्मीद लगाए पीड़ित परिवार अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं, लेकिन चारों पर चुप्पी पसरी हुई है।
पीड़ित परिवारों में पंचायत के एक पूर्व सरपंच राकेश परते और एक मौजूदा पंच गीताबाई कोर्राम की झोपड़ी भी शामिल है। स्थानीय नेता की मदद से हिंद किसान ने राकेश परते से फोन पर बात की, राकेश परते ने कहा, ‘अचानक से हमला हुआ, न हमारी झोपड़ी बची और फसल। हमें लगातार गांव से बाहर करने की कोशिश की जा रही है। हमारे पास कोई और ठिकाना नहीं है। सरकार हमारी मदद करे इसलिए हमें यह धरना करना पड़ रहा है और हम कुछ नहीं कर सकते।‘
इस मामले पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने राज्य सरकार के रवैये की कड़ी निंदा की है। छत्तीसगढ़ में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव संजय पराते ने हिंद किसान से फोन पर बातचीत में कहा, ‘जो हुआ अब वह सबके सामने है, लेकिन जब प्रशासन की नजर में ये घटना आ गई है और उसने जांच कराने की बात कही है तब भी इतने दिनों के बाद एफआईआर तक दर्ज क्यों नहीं की गई है। साल 1992-93 से ये परिवार यहां रह रहे हैं और थोड़ी बहुत खेती बाड़ी कर रहे हैं। कई बार इन लोगों ने जमीन के पट्टे के लिए आवेदन किया लेकिन हर बार उनका आवेदन रद्द कर दिया गया।‘
अचानक हुई इस घटना से पीड़ित परिवारों को कुछ समझ नहीं आ रहा है। उनके लिए अब सरकारी मदद ही कुछ उम्मीद जगा सकती है लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। पीड़ित परिवार अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है।
संयज पराते ने हिंद किसान से कहा, ‘हमने एक दल गांव भेजा है जो इस मामले पर एक रिपोर्ट तैयार करेगा। वह रिपोर्ट हम सरकार और मीडिया को सौंपेंगे। हमारी मांग है कि जल्द से जल्द उन परिवारों को न्याय मिले, उनके नुकसान के बदले सरकार मुआवजा दे ताकि वे परिवार जिंदा रह सकें और अपने बच्चों को पाल सकें।‘
उन्होंने कहा कि यह पहली घटना नहीं है दुगली गांव के आस- पास यही हो रहा है। राजनीतिक तौर पर प्रभावशाली गांव के ही लोग हैं जो खुद भी आदिवासी हैं, लेकिन सपन्न हैं। वह जमीन के पट्टे और कब्जे के लिए लोगों को बाहर करना चाहते हैं और कहीं न कहीं इसमें प्रशासन की भी मिलीभगत है।
इससे पहले भी इन आदिवासियों को यहां से निकालने की कोशिश की गई थी। लेकिन ये परिवार गांव में ही बने रहे। अबकी बार उनकी झोपड़ियों को तोड़ दिया गया है और फसलें बर्बाद कर दी गई हैं। ताकि उनके पास कोई विकल्प ही न बचे।
हिंद किसान ने स्थानीय प्रशासन और वन विभाग के अधिकारियों से इस मुद्दे पर बात करने की कोशिश की लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। हालांकि स्थानीय मीडिया में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक वन प्रबंधन समिति दुगली के अध्यक्ष शंकर नेताम का कहना है कि ‘ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर इन अवैध कब्जाधारियों को वनभूमि से हटाया गया है। झोपड़ी जलाने का आरोप निराधार है। खुद ही अपने झोपड़े जलाकर फोटो खींचकर शिकायत की है।’
फिलहाल पीड़ित परिवारों के धरने और राजनीतिक दवाब के चलते 27 अक्टूबर को जांच के लिए अधिकारियों के दौरे की बात की जा रही है। लेकिन तमाम सवालों के बीच फिलहाल हकीकत यही है कि 20 परिवारों के सर से छत उजड़ गई है उनकी फसल बर्बाद हो गई है और वे परिवार न्याय और राहत के लिए धरना दे रहे हैं।