केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े तीनों अध्यादेश बहुत जल्द क़ानून की शक्ल लेने जा रहे हैं. सरकार का दावा है कि ये कानून कृषि सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम है और इससे किसानों की खुशहाली के नए रास्ते खुलेंगे. लेकिन खुद किसान, उनके संगठन और विपक्षी दलों के साथ-साथ सत्ताधारी गठबंधन की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल भी इस कानून का विरोध कर रही है. किसान लगातार सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर अपनी आवाज़ को बुलंद कर रहे हैं. इन कानूनों में कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 और किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता विधेयक-2020 संसद के दोनों सदनों, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल-2020 शामिल हैं.
इनमें कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 वास्तव में मंडी व्यवस्था से जुड़ा है. इन 10 बिंदुओं और सरल शब्दों में समझिए कि इसके पक्ष-विपक्ष में क्या दावे किये जा रहे हैं-
सरकार के दावे
- नया क़ानून एपीएमसी यानी मंडियों के बाहर फसलों की ख़रीद-बिक्री को प्रोत्साहित करता है. अब पैनकार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, साझेदारी फर्म या कंपनी देश के किसी भी कोने में किसी भी किसान से फसल खरीद सकेगी.
- एपीएमसी एक्ट के तहत चलने वाली मंडियों में ख़रीद-बिक्री पर टैक्स लगता है. नया क़ानून के तहत मंडियों के बाहर होने वाली ख़रीद-बिक्री पर टैक्स नहीं लगेगा. यानी व्यापारियों के लिए मंडी के बाहर व्यापार करना ज़्यादा मुफीद साबित होगा.
- देश में कहीं भी फसल खरीदने और बेचने की छूट ‘एक देश- एक बाज़ार’ की व्यवस्था बनेगी. इससे फसलों का बाजार ज़्यादा प्रतिस्पर्धी बनेगा और इससे किसानों को अच्छी क़ीमत मिल सकेगी.
- नए कानून के तहत कारोबारियों को फसलों को ख़रीदने पर किसान को उसी दिन या अधिकतम तीन दिन के भीतर उपज का भुगतान करना होगा. लेकिन केंद्र सरकार, किसान उत्पाद समूहों या कृषि सहकारी सोसायटी जैसे खरीदारों को ऐसी शर्त से छूट दी गई है.
- उपज की ख़रीद-बिक्री को और ज़्यादा आसान और प्रभावी बनाने के लिए कृषक उत्पादक संगठन यानी एफपीओ को बढ़ावा देने और इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म भी बनाने की भी बात क़ानून कहता है.
क़ानून पर किसानों के सवाल-
- सरकार मंडियों के बाहर टैक्स फ्री निजी मंडियां बनाने की छूट देकर एपीएमसी मंडियों को बायपास करके उन्हें कमजोर करना चाहती है. टैक्स में अंतर की वजह से एपीएमसी मंडी के भीतर कारोबार घटने, आढ़तियों के पलायन और अंत में मंडियों के बंद हो जाने का खतरा है. अगर ऐसा होता है तो पहले से ही एमएसपी पर फसलों की खरीद घटाने की बात कह रही सरकार इसी को बहाना बनाकर एमएसपी पर खरीद को बंद या सीमित कर देगी.
- एपीएमसी क़ानून या मंडियों में आ रही दिक्कतों की दूर करने की बजाय सरकार एक नया क़ानून और व्यवस्था किसानों पर थोप रही है.
- इस क़ानून में मंडियों के बाहर ख़रीद-बिक्री पर किसी तरह की निगरानी की बात नहीं की गई है. ऐसे में किसानों के साथ धोखाधड़ी या जालसाजी होने की आशंका रहेगी.
- किसानों को डर है कि सरकार इस कानून के जरिए एमएसपी पर फसलों की खरीद को बंद या बेहद सीमित करना चाहती है. इसके अलावा सरकार ने कहीं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का जिक्र नहीं किया है. व्यापारी किसानों को न्यूनतम कितनी क़ीमत देंगे, इस बात को भी कानून में कहीं स्पष्ट नहीं किया गया है.
- क़ानून में किसी विवाद के निपटारे के लिए जो प्रक्रिया बनाई गई है. उसके तहत समझौता मंडल, एसडीएम और फ़िर ज़िलाधिकारी तक एक लंबी प्रक्रिया है. ये न केवल किसानों के लिए ख़र्चीली, बल्कि लालफीताशाही को बढ़ावा देने वाली है.
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 के पक्ष और विरोध को इन 10 मुख्य बिंदुओं से समझा जा सकता है. लेकिन सच्चाई ये है कि पूरी समझ बनाने के लिए हमें शायद तीनों विधेयकों को एक साथ जोड़कर भी देखना होगा.